दीदी का राज्य से राष्ट्र की तरफ ‘कूच’

पांच राज्यों के चुनाव केवल राज्यों की राजनीती को प्रभावित नहीं कर रहे हैं बल्कि देश की राजनीती में भी बड़े बदलाव आने की सम्भावना है | आने वाले भविष्य में देश की राजनीती में इन राज्यों के परिणाम लोगों को बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर कर सकते हैं | 

पांच राज्यों के चुनाव में सबसे रोमंचाकरी चुनाव पश्चिम बंगाल का रहा | इस चुनाव पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई थी | देश के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री से लेकर भाजपा के सभी बड़े नेता राज्य को फतह करने के लिए निकले थे लेकिन ममता बनर्जी की टक्कर के कारण भाजपा सत्ता के द्वार तक नहीं पहुँच सकी | 

अभी तक दिल्ली में मोदी के सामने विपक्ष का कोई भी मजबूत चेहरा नहीं है | जिस अंदाज़ में ममता बनर्जी ने भाजपा से अपनी कुर्सी बचाने में सफलता प्राप्त की है उससे लगता है कि आने वाले दिनों में राष्ट्रीय राजनीती में दीदी अपना जलवा दिखाने का प्रयास कर सकती हैं | 

यह चुनाव हाईप्रोफाइल चुनाव था जहाँ एक ओर TMC पिछले 10 सालों से सत्ता पर काबिज थी, इसी को मुद्दा बनाने के लिए बंगाल के वोटरों को सत्ता में खोट निकालने का प्रयास भाजपा द्वारा किया गया |

देश के प्रधामंत्री, गृहमंत्री, सभी मंत्री, पूरा भाजपा संगठन भाजपा के मीडिया और सोशल मीडिया प्रबंधक सभी मिलकर भी ममता बनर्जी को परास्त नहीं कर पाए | ममता बनर्जी ने जमकर चुनाव लड़ा और जनता का आशीर्वाद भी पाया | 

दिल्ली की संसद में भी TMC के संसद भाजपा सरकार की जिस तरीके की आलोचना करती है वैसी आलोचना संभवतः आज के समय में कांग्रेस के सांसद भी नहीं करते हैं | ममता की इस जीत ने दीदी को केन्द्रीय राजनीती का केंद्र बिंदु बना दिया है | 

यह चुनाव केवल ममता बनर्जी के लिए ही नहीं बल्कि भाजपा के लिए महत्वपूर्ण होगा | भाजपा को अब यह समझना होगा कि प्रत्येक राज्य की राजनीतिक मानस एक जैसा नहीं होता है | दूसरे दल से आये नेता एक सीमा तक तो सहयोग कर सकते हैं लेकिन राजनैतिक दल की असली शक्ति उसका अपना संगठन तथा कार्यकर्ता ही होता है | राजनीती के तात्कालिक मुद्दे आपके एक या दो बार चुनाव जिताने में सहयोग कर सकते हैं लेकिन यदि सभी राज्यों में भाजपा की सरकार का गठन करना है तो पार्टी को संगठन की मूल इकाई को मजबूत करके उन्हें ही आगे बढाने का कार्य करना होगा क्योंकि चुनाव की असली लड़ाई बूथ पर लड़ी जाती है | 

केरल और तमिलनाडू के परिणाम यही बताते हैं कि देश में अभी भी क्षेत्रीय दलों की स्वीकार्यता बरक़रार है | राष्ट्रीय दलों को यदि इन राज्यों में अपनी पहुँच बनानी है तो उनको क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर ही कार्य करना होगा | विशेषकर कांग्रेस को इस चुनाव से फिर से चिंतन करने की जरूरत है कि वह आगे की राह कैसे तय करती है |  

डॉ. कन्हैया झा 

Dr. Kanhaiya Jha


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