16 वर्ष पूर्व तृणमूल पार्टी की स्थापना हुई थी | पार्टी के संस्थापक सदस्य एवं राज्य सभा सांसद दिनेश त्रिवेदी ने बहुत ही नाटकीय ढंग से राज्य सभा से अपना स्तीफा दे दिया | भरी संसद में उन्होंने कहा कि उन्हें पार्टी में घुटन महसूस हो रही है | वह पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा से बहुत ही आहत दिखे | उन्होंने कहा जो कुछ भी पश्चिम बंगाल में हो रहा है, उसे अब नहीं देख सकता हूँ |
तृणमूल के किसी वरिष्ठ नेता का पार्टी से त्याग पत्र देना तथा पार्टी छोड़ने का यह पहला मामला नहीं है | इससे पहले भी पार्टी के नेताओं ने ममता बनर्जी का साथ छोड़ा है और बंगाल में तेज गति से अपने पैर ज़माने वाली पार्टी भाजपा का दामन थामा है |
जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है , ममता के साथी उन्हें छोड़कर जा रहे हैं | लेकिन सामान्यतः सौम्य, मृदुभाषी एवं दिल्ली की राजनीती में तृणमूल का पक्ष रखने वाले इतने वरिष्ठ नेता का पार्टी छोड़ना सभी के लिए आश्चर्य करने वाला ही था |
बंगाल की राजनीती में हिंसा कोई नई बात नहीं है| पहले भी पश्चिम बंगाल में खूनी राजनीती होती रही है | लेकिन पार्टी का वरिष्ठ संस्थापक साथी यदि यह बात कह रहा है तो इसके गहरे मायने होने चाहिए | क्योंकि राजनीती में कोई भी स्थापित व्यक्ति तब तक अपनी पार्टी नहीं छोड़ता है जब तक उसके सभी रास्ते पार्टी की नई टीम द्वारा नहीं बंद किये जाते हैं |
जिन लोगों ने पार्टी का गठन किया यदि वह लोग पार्टी में हाशिये पर चले जाते हैं तो तात्कालिक तौर पर पार्टी के कुछ लोगों को लाभ मिल सकता है लेकिन लम्बे समय के लिए पार्टी को नुकसान ही होता है |
दिनेश त्रिवेदी के इस्तीफे को राजनैतिक तौर पर भी देखा जाना चाहिए| जब से स्तीफे की पेशकश की है यह आशंका लगाया जा रहा है कि वह भाजपा में शामिल हो सकते हैं | भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के बयान तो इसी तरफ इशारा करते हैं | भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री एवं पश्चिम बंगाल प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने कहा “दिनेश त्रिवेदी अच्छे नेता है जो तृणमूल पार्टी में घुटन महसूस कर रहे थे | प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने तो उनका स्वागत भी किया है| दिलीप घोष ने कहा “ तृणमूल के अंत की शुरुआत पहले ही हो चुकी है | तृणमूल से त्रिवेदी का दूर होना केवल समय का मामला है | अगर दिनेश त्रिवेदी भाजपा से जुड़ना चाहते हैं तो हम उनका स्वागत करेंगे |” एक और तो यह भाजपा की राजनीतिक जीत है | भाजपा पहले ही यह घोषणा कर चुकी है कि चुनाव आते आते ममता दीदी अकेली पड़ जाएँगी | इसका मतलब है कि भाजपा पहले से तैयारी कर चुकी है ममता को अलग थलग करने की |
जो-जो नेता ममता बनर्जी का साथ छोड़कर जा रहे हैं उन सब को ममता ने ‘सड़े फल’ की संज्ञा दी है | लेकिन क्या अपने इतने वरिष्ठ नेता के प्रति भी पार्टी का यही रुख रहता है | यह राजनैतिक रूप से सभी के लिए देखने लायक होगा |
तृणमूल (TMC) में घुटन के मायने
लेबल:
Dinesh Trivedi,
TMC,
Violence in Bangal
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 टिप्पणियाँ:
Post a Comment