बंगाल का सियासी दांव-पेच

राजनीति का क्षेत्र व्यापक संभावनाओं का क्षेत्र है | इस क्षेत्र की अपनी विशेषताएं है | रोटी, कपडा और मकान के बाद जिस चीज की सबसे बड़ी आवश्यकता होती है वह है, सम्मान | सम्मान के लिए व्यक्ति किसी भी स्तर तक चला जाता है तथा सम्मान पर ठेस पहुँचने से व्यक्ति बड़ी से बड़ी चीज को भी छोड़ देता है | 

अपने सम्मान की रक्षा के लिए सबसे बड़ी चीज है दृढ इक्षाशक्ति | यही दृढ इच्छा शक्ति राजनीति के लिए आवश्यक है | इतिहास गवाह जब कभी राजनेता या राजनैतिक दल की इच्छा शक्ति प्रबल होती है तो बड़े से बड़े कार्य को करना संभव होता है | कुछ दशक पूर्व तक भारतीय जनता पार्टी को उत्तर भारत की पार्टी कहा जाता था | दक्षिण एवं पूर्वोत्तर भारत में इसका अस्तित्व नाम मात्र का ही था | जब से भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा गृहमंत्री अमित शाह की राह पर कार्य करना प्रारंभ किया है तब से पार्टी का व्यापक विस्तार सम्पूर्ण देश में हो गया है | 

आने वाला सबसे बड़ा चुनाव बंगाल का विधान सभा चुनाव है | कभी तृणमूल कांग्रेस पार्टी द्वारा वर्षों से सत्तासीन वामपंथियों की सत्ता को उखाड़ने के लिए परिवर्तन का नारा दिया था, जिसको बंगला में कहा गया ‘चलो पलटाई’ | आज भारतीय जनता पार्टी भी उसी उसी राह पर बंगाल से तृणमूल कांग्रेस पार्टी को उखाड़ फेंकने के लिए परिवर्तन यात्रा निकाल रही है | 

आज मोदी-अमित शाह की जोड़ी के कारण देश ही नहीं दुनिया की नज़रे भी बंगाल की राजनीति  पर है | बंगाल का राजनैतिक शोर दिल्ली की मीडिया में जोर-शोर से उठाया जा रहा है | भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ट नेता श्री अटल बिहारी बाजपाई तथा श्री लालकृष्ण आडवानी की सदैव इच्छा रही की बंगाल में भाजपा का विस्तार किया जाये | काल मार्क्स की यह युक्ति कि “कुछ हासिल करने के लिए हमें उस काम के प्रति दृढ संकल्प प्रदर्शित करना होगा |” शाह-मोदी की  जोड़ी पर सटीक बैठती है | 

आज भाजपा केवल उत्तर भारत की पार्टी न होकर देश के चारो और सत्ताकेन्द्रित हो चुकी है | देश के अधिकतर बड़े और प्रभावी राज्यों पर भारतीय जनता पार्टी या गठबंधन की सरकारें हैं | अमित शाह का सपना पूर्ण हुआ जब देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए प्रचंड बहुमत की सरकार उन्होंने बनवाई | अब उन्हीं के मार्गदर्शन में बंगाल का रण भी जीतने की कवायद चल रही है | 

पश्चिम बंगाल शुरू से ही आर्थिक तथा सांस्कृतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रहा है| बंगाल की लोक संस्कृति ने पूरे भारत में अपना प्रसार किया है | बंगाल की विशिष्ट संस्कृति प्राचीन भारत की झलक को दिखाती है | जब अंग्रेजों का भारत में आगमन हुआ, उस समय बंगाल ही आर्थिक गतिविधियों का केंद्र था क्योंकि यह शहर समुद्र के किनारे पर बसा था | विदेशों से आने वाले यहीं के बंदरगाहों पर अपना समान उतारते थे | बाद में दिल्ली तथा मुंबई आर्थिक तथा राजनैतिक राजनधानी बनी | किन्तु बंगाल ने अपना सांस्कृतिक अस्तित्व सदैव बचाकर रखा | 

इसमें कोई दो राय नहीं है कि ममता बनर्जी का सफल राजनैतिक व्यक्तित्व है | किसी राजनीतिक दल से बाहर आकार अपना दल खड़ा करना तथा सत्ता की प्राप्ति करना यह आसान काम नहीं होता है | इसके लिए ममता बनर्जी ने दिन रात एक करके सफलता प्राप्त की थी | जब बंगाल में सिंगुर का आन्दोलन चल रहा था और नंदीग्राम में पुलिस की फायरिंग हुई, उस समय बंगाल की राजनीति उफान पर थी | यह समय ममता बनर्जी के लिए राजनीतिक पृष्ठभूमि तैयार करने के लिए उपयुक्त समय था | इसी घटनाक्रम ने ममता बनर्जी को राजनैतिक जमीन दी| 

अब भारतीय जनता पार्टी बंगाल में सत्ता पर काबिज होने के लिए दिन रात काम कर रही है | ममता बनर्जी के परिवार वालों पर लगने वाले भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण जनता में पार्टी की छवि ख़राब हो रही है | इस कारण से ममता बनर्जी की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह भी लग रहे हैं | वहीं भाजपा इस मुद्दे को राजनैतिक मुद्दा बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है |

आने वाले चुनाव में सबसे गंभीर विषय वहां का शांतिपूर्वक चुनाव कराना होगा| क्योंकि बंगाल की खूनी राजनीति के कारण अनेक लोग कालकलवित हो सकते हैं| चुनाव आयोग को बहुत ही हिम्मत तथा व्यवस्था के साथ इस गंभीर विषय पर अपना ध्यान देना चाहिए | 

डॉ. कन्हैया झा
Dr. Kanhaiya Jha

देश के संसाधनों का पुनर्प्रयोग आवश्यक

मनुष्य की आवश्यकताएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है | मानव की जीवनशैली में भी समय के अनुसार अनेक परिवर्तन आये हैं | जीवन का उद्देश्य केवल रोटी, कपड़ा, मकान और अध्यात्म की प्राप्ति मात्र नहीं है बल्कि आज गरिमामय जीवन जीने के लिए नई नई आवश्यकताएँ बढ़ रही है |

बढ़ती आबादी तथा आवश्यकता के कारण संसाधनों का उपभोग भी बढ़ा है | खपत जितना अधिक होगा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी उसी अनुपात में बढ़ेगा तथा अधिक दोहन के कारण यह बहुत जल्दी ही विलुप्त भी हो सकते हैं | इसके वैश्विक समस्या का समाधान 2 तरीकों द्वारा किया जा सकता है | पहला वैकल्पिक संसाधनों की पहचान की जाये, दूसरा संसाधनों का पुनः उपयोग किया जाए जिसे चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy) भी कहा जाता है | 

जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक कारणों तथा प्रभाव से विश्व भलीभांति है | अभी हाल ही में उतराखंड में जलाशयों का टूटना तथा तबाही के लिए जलवायु परिवर्तन ही जिम्मेदार है | यह भयानक जलवायु परिवर्तन इसलिए आया क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था खपत आधारित हो रही है | इसका प्रतिकूल प्रभाव प्रकृति पर रहा है जो अंततः भयावह है | 

दुनिया भर में यह बहस जोरों पर है कि प्राकृतिक संसाधनों का किस सीमा तक दोहन किया जाये | यदि दोहन की गति इसी प्रकार की रही तो वह दिन दूर नहीं कि आने वाले पीढ़ी के लिए प्राकृतिक संसाधनों के नाम पर कुछ भी नहीं बचेगा | 

हमारी संस्कृति में पृथ्वी को ‘माँ’ कहकर पुकारा गया है “माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या” ये धरती हमारी माता है और हम इसके पुत्र है। धरती माता हमारे जीवन के अस्तित्व का एक प्रमुख आधार है,  हमारा पोषण करती है। इसलिए वेद आगे कहते है "उप सर्प मातरं भूमिम्" हे मनुष्यो मातृभूमि की सेवा करो । अपने राष्ट्र से प्रेम करो, राष्ट्र के साथ द्रोह करना धर्म के साथ द्रोह करना ही है । देश के प्रति इस तरह निष्ठा रखना, अपनी मातृभूमि के प्रति ऐसी श्रद्धा व प्रेमभाव रखना जैसे भाव केवल और केवल भारतीय संस्कृति में ही प्रकट होता है । जब तक हमारा व्यवहार इस पृथ्वी पर पुत्र वाला नहीं होगा तब तक पृथ्वी दिन प्रतिदिन अपने विनाश की तरफ ही जाती रहेगी | हमें यह सदैव याद रखना चाहिए कि हम इस धरती के मालिक नहीं है | इस धरती पर हम केवल 100 वर्षों के लिए ही आये हैं  और आने वाली संतति के जीवन को सुगम बनाने के लिए हमें कार्य करना है | हम अंत के माध्यम न बने हम सतत प्रवाह के धावक बनें | 

आज यह बहुत आवश्यक हो गया है कि हम समाज संरचना को और अधिक कुशल बनायें | जीवन जीने का ढंग इस प्रकार का हो जिससे कम से कम प्रदूषण निकले | निश्चित रूप से कहीं न कहीं से इसकी शुरुआत इस पृथ्वी को बचने के लिए करनी होगी | आज सही दिशा में चिंतन करने की कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता है | 

इन समस्या के समाधान के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था को अपनाना बहुत जरूरी है | चक्रीय अर्थव्यवस्था की इसका समाधान है | विश्व की बहुत से चुनौतियों का सामना इसके माध्यम से किया जा सकता है | वस्तुओं का फिर से उपयोग हो, कचरा केवल कचरा न रहे | वह दूसरे कार्यों में उपयोग हो तथा संसाधनों का कुशल उपयोग मानव की जीवन शैली बने इसकी महती आवश्यकता है | इस दिशा में नए नए कदम उठाने की आवश्यकता है | 

आज युवा भारत की शक्ति के माध्यम से इस कार्य को करने की शुरुआत की जा सकती है | सरकार के सहयोग तथा युवा के मस्तिक के आधार पर निश्चित ही इस दिशा में बढ़ा जा सकता है | यह रचनात्मक कार्य निश्चित ही पूरी पृथ्वी के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगा | इस क्षेत्र में होने वाले नए-नए स्टार्टअप से युवा पीढ़ी को रोज़गार भी प्राप्त होगा तथा पृथ्वी की रक्षा भी हो सकेगी | 

डॉ. कन्हैया झा 

Dr. Kanhaiya Jha


रायसीना संवाद

विश्व के देशों के सभी देशों के साथ बेहतर सम्बन्ध एवं संवाद की शुरुआत भारत द्वारा सन 2016 में रायसीना संवाद के माध्यम से शुरू किया गया | इस कार्यक्रम के माध्यम से भविष्य में देशों के मध्य बेहतर समन्वय एवं सहयोग के वातावरण का निर्माण करना है | इसका आयोजन भारत के विदेश मंत्रालय एवं Observer Research Foundation द्वारा किया प्रत्येक वर्ष किया जाता है |   आज से रायसीना संवाद का 6वां सम्मलेन शुरू होगा| रायसीना संवाद के लिए सरकार की तरफ से सभी प्रकार की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं | प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वीडियो कोंफ्रेस के माध्यम से  कार्यक्रम की शुरुआत की जाएगी | इस कार्यक्रम में मुख्यअतिथि के रूप में रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कगामे और डेनमार्क के प्रधानमंत्री मेट्टे फ्रेडेरिक्सषन मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होंगे | ऑस्ट्रेंलिया के प्रधानमंत्री स्कॉनट मॉरीसन भी कार्यक्रम को संबोधित करेंगे | यह कार्यक्रम 4 दिनों तक चलेगा | सभी प्रतिभागी वर्चुअल माध्यम से इस कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे |

इस आयोजन की शुरुआत वर्ष 2016 में की गई थी | तब से लेकर इस वर्ष तक लगातार यह सम्मलेन चल रहा है | इस सम्मलेन का उद्देश्य भू-राजनीति तथा भू-अर्थशास्त्र पर केन्द्रित रहता है | भू-राजनीति भाग में बहुपक्षवाद, आपूर्ति श्रृंखला, जलवायु परिवर्तन, सूचना महामारी आदि विषयों पर प्रतिभागी चिंतन करने वाले हैं |   इस वर्ष कुल 50 सत्रों का आयोजन किया गया है | कार्यक्रम की विशालता इसी से समझी जा सकती है कि इस कार्यक्रम में 50 देशों से 150 वक्ताओं को संबोधन का अवसर प्राप्त होने वाला है | 80 देशों से 2 हजार प्रतिभागी कार्यक्रम का हिस्सा बनने वाले हैं | इसके अलावा सोशल मीडिया से जुड़ने वालों की संख्या अलग है | विभिन्न देशों जैसे पुर्तगाल, स्लोतवेनि‍या, रोमेनिया, सिंगापुर, नाइजीरिया, जापान, इटली, स्वीतडन, केनिया, चिली, मॉलदीिव, ईरान, कतर और भूटान के विदेश मंत्री कार्यक्रम में भाग लेने वाले हैं | 

डॉ. कन्हैया झा 

Dr. Kanhaiya Jha

विकासशील भारत के 75 वर्ष

भारत अपनी आज़ादी के 75 वर्ष मना रहा है | एक तरफ वैश्विक समस्याएँ चरों तरफ से घेरी हुई हैं दूसरी तरफ युवा जोश तथा मेहनत के कारण हमने समस्या को अवसर में बदल रहा है | आज समय है कि हमें अपने अतीत और भविष्य के कार्यों तथा उपलब्धियों का मूल्यांकन करें | महान वीर सपूतों ने जिस भारत के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था, क्या हम उसकी पूर्ति कर पाए | आज़ादी के दीवानों ने जिस लक्ष्य तथा सपनों के लिए हँसते-हँसते फांसी का फंदा चूम लिया था, क्या हम उन्हें प्राप्त कर पाए| यह बिलकुल उपयुक्त समय है जब हम इन सब बातों पर विचार करें और आगे के मार्ग को तय करें | 

15 अगस्त 1947 देश के सामने एक नई आशा तथा उमंग के साथ आया था | लोग अपने सामने उन सपनों को साकार होते हुए देख रहे थे जिसकी प्रतीक्षा वर्षों-वर्षों से भारतीय जनमानस कर रहा था | सभी को विश्वास था कि अब भारत का बेहतर भविष्य निश्चित होगा | इन आशाओं तथा अपेक्षाओं के साथ-साथ कुछ जमीनी चुनौतियाँ भी हमारे सामने थी जैसे, अशिक्षा, गरीबी तथा कुपोषण | जब अंग्रेज भारत छोड़ कर गए तब भारत की आर्थिक हालत बहुत ख़राब हो चुकी थी | अंग्रेजों ने भारत का खूब शोषण किया | इसलिए जिन लोगों के पास भारत की सत्ता आई उनके पास इनके कल्याण के लिए बजट की कमी थी | 

भारत इन चुनौतियाँ का वर्षों से सामना करता रहा तथा पहले से बेहतर स्थिति में आज दुनिया के सामने विश्वशक्ति बनकर खड़ा हो गया है | यदि हम भारत की वर्तमान स्थिति की बात करें तो आज भारत दुनिया में क्रय शक्ति के हिसाब से तीसरे स्थान पर आता है | हमने केवल 75 वर्षों में ही अपने इन लक्ष्यों को प्राप्त किया है| आने वाले कुछ वर्षों में भारत और तेज गति से दुनिया के सामने अपना लोहा मनवाने में सफल होगा | 

भारत का गौरवशाली अतीत महर्षि पतंजलि, आचार्य चाणक्य, जगदगुरु शंकराचार्य तथा स्वामी विवेकानंद, महात्मा गाँधी, वीरसावरकर, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, गुरुनानक देव आदि लोगों का रहा है | हमने दुनिया को अतीत में अनेक उपलब्धियां दी है | काल के कलरव में हमारा गौरव कहीं खो सा गया था किन्तु भारतवासियों की दिन रात मेहनत के कारण हम फिर से एक बार विश्व में अपना अहम् स्थान बनाने में सफल हुए हैं | ऐसे समय में वल्लभभाई पटेल का यह वाक्य पूर्णतः युक्तिसंगत प्रतीत होता है जब उन्होंने कहा था कि “यहाँ की मिटटी में ऐसा कुछ अनोखा है जो इतनी कठिनाइयों के बावजूद यह महान विभूतियों की धरती रही है |” 

एक प्रश्न उठता है भारत का भविष्य किस पथ पर अग्रसर होगा | हम सही राह पर है इसका प्रमाण क्या है ? तो हमारे यहाँ कहा गया है शास्त्र ही प्रमाण है | जब मन में किसी प्रकार की दुविधा हो, कहीं मार्ग न मिल रहा हो तो अपने शास्त्रों की तरफ चलों, अपनी परम्पराओं की तरफ निहारों, वहीँ से मार्ग मिलता है | भारत का जिन महान सपूतों ने सिर गौरव से ऊँचा कर दिया उनकी कही गई बातों को स्मरण करों स्वयं मार्ग प्रशस्त हो जाता है |  

हम दुनिया का सबसे युवा लोकतंत्र देश हैं | जहाँ दुनियां के देशों में बूढों की संख्या बढ़ रही है वहीँ भारत में युवाओं की संख्या अधिक है | युवा शक्ति पूरी उर्जा के साथ देश के सपनों को साकार करने के लिए तत्पर है | इन युवाओं को केवल मजदूर बनाने का लक्ष्य न होकर इनके अन्दर जो असीमित क्षमता विद्यमान है उसको निखारने की आवश्यकता है | आज पढ़ा लिखा युवा बेरोजगारी की मार झेल रहा है | ख़राब शिक्षा व्यवस्था में श्रम का पर्याप्त मानदेय न मिलना प्रतिष्ठित से प्रतिष्ठित संगठन की पहचान बन चुका है | यह हालात केवल उन संगठनों एवं युद्यमों के नहीं है जो केवल मुनाफे के लिए कार्य करते है बल्कि उन संगठनों का भी यही हाल है जो दिन रात ज्ञान की बाते सार्वजानिक मंचों पर करते हैं | आज उचित शिक्षा व्यवस्था विकसित करके ऐसे भारतवासी को बनाने की जरूरत है जिसे आयु के एक पड़ाव पर आकर रोज़गार के लिए भटकना न पड़े बल्कि उसका विकास कुछ प्रकार से हो, कि उसे पता ही न चले कि कब उसकी शिक्षा पूर्ण हुई और वह रोज़गार भी प्राप्त कर गया | रोज़गार के अभाव में जिस प्रकार की मानसिक पीड़ा युवाओं में होती है उसके उसके अन्दर की ज्ञानशक्ति क्षीण होती जाती है तथा  विद्यमान असीमित सम्भावना दम तोड़ने लगती है | ऐसे संकट काल में स्वामी विवेकानंद का वाक्य स्मरण करना चाहिए उन्होंने कहा था कि :- “वे कहते हैं इस पर विश्वास करो, उस पर विश्वास करो, लेकिन मैं कहता हूँ, सबसे पहले अपने आप पर विश्वास करो, दुनिया का इतिहास चंद ऐसे लोगों का इतिहास हैं जिन्होंने खुद पर विश्वास किया|”

युवाओं के रोजगारोन्मुखी विकास से ही भ्रष्टाचार, अनैतिकता, जातिवाद समेत अन्य कुरूतियों का समापन होगा | क्योंकि जैसे-जैसे व्यक्ति का रोज़गार बढ़ता है, वह अपने काम में लगा रहता है तो उसकी संवेदनशीलता जागृत होने लगती है | वह समाज के कल्याण के लिए अपना समय तथा साधन लगाता है | लेकिन भूखे युवा से किसी प्रकार की अपेक्षा करना केवल समाज को भ्रमित करने से अधिक और कुछ भी नहीं होता है | इसी से देश में आमूलचूल परिवर्तन होगा |

आज प्रति व्यक्ति जीवन स्तर में सुधार करने के लिए तेज गति से विकास करने की आवश्यकता है | भारत का विकास कैसा हो इस पर भी भारत समेत दुनिया में अलग अलग चर्चाएँ हैं, क्या कुछ पुंजीपतियों का विकास ही विकास है, या समाज के अंतिम में खड़े व्यक्ति का विकास है| या हम उन आंकड़ों को विकास मान लें जो सरकार जारी करती है| भारत का विकास तभी विकास माना जायेगा जब यह सर्वसमावेशी होगा, सर्वस्पर्शी होगा तथा सभी के कल्याण वाला होगा | नहीं तो सरकारी आंकड़े आयेंगे और जायेंगे और भारत की गरीब जनता ऐसे ही बद्दतर ज़िन्दगी को जीने के लिए मजबूर होगी | 

भारतीय संस्कृति सदैव मानवता तथा प्रकृति को बचाने वाली रही है | मानव समेत छोटे से छोटे जीव के भरण भोषण का कार्य प्रत्येक घरों की परंपरा में है | हम तुलसी तथा पीपल के पेड़ को जल चढाते हैं, उन्हें ईश्वर की तरह पूजते हैं, चीटियों को आटा देते हैं, गाय को माँ मानकर सेवा करते हैं, कुत्ते को भी भोजन कराते हैं| लेकिन इन सभी संस्कारों का संरक्षण तभी होगा जब हम मानव को गरिमापूर्वक जीने के साधन उपलब्ध करा पाने में सक्षम होंगे | इसीलिए हमारा विकास का मार्ग ऐसा होना है जो पर्यावरण से लेकर सभी प्रकार के जीवों के संरक्षण की चिंता करे | 

आज कुछ विसंगतियां जाने तथा अनजाने हमारे समाज को बाँट रही है | हमारा देश “एकता में अनेकता” के मंत्र को मानने वाला था किन्तु इतिहास के पन्नों में पढाया गया कि हम अनेकता में एकता वाले हैं | कहीं कहीं तो यह भी पढाया गया की हम कभी एक थे ही नहीं | यह सब बातें भारत को तोड़ने के लिए रची गई थी | इतिहास को भुलाते हुए हमें यह बात समझनी होगी कि हम सब एक हैं | हमारी पूजा पद्धति, विधियाँ तथा नित्यक्रम अलग होंगे लेकिन जिस उद्देश्य के लिए हम यह सब करते हैं उसका उद्देश्य एक ही है वह है परम आनंद की प्राप्ति | हमें गरीबी की रेखा, जाति की रेखा, अगड़े-पिछड़े की रेखा इन सब को समाप्त करना ही होगा| 

जब भी देश की चुनौतियों के सामना की बात आती हैं तो आम तौर  पर पूरी की पूरी जिम्मेदारी सरकार पर डाल दी जाती है | यह बात सच है समाज संरचना तथा संचालन का कार्य सरकार का होता है | लेकिन सरकार की अपनी सीमाएं हैं | सरकार भी कार्य कार्य करती है जो जनता चाहती है | सरकार सदैव संगठित जनता के दवाब का पालन करती है | लेकिन समाज में जब भी कोई  बड़ा परिवर्तन होता है तो वह सरकार के द्वारा न होकर वह समाज के द्वारा ही संभव होता है | हालाँकि परिवर्तन एक दीर्घकालिक कार्य है लेकिन इसकी शुरुआत कभी तो करनी ही होगी| इसीलिए सार्वजनिक निजी साझेदारी द्वारा ही बेहतर भारत का मार्ग प्रशस्त होगा | 

भारत सरकार द्वारा स्वच्छ भारत मिशन निश्चित ही जनभागीदारी कार्यों को करने के लिए प्रेरक सिद्ध हुआ है | सरकार के इस कार्यक्रम ने आम जनमानस को झकझोरा तथा सभी ने इस आन्दोलन को आत्मसात करके इसे अपनाया| आज छोटा से छोटा बच्चा भी सफाई को लेकर सतर्क रहता है | 

कोरोना ने पूरी दुनिया में अपना तांडव किया | विश्व की अर्थव्यवस्था में लगतार गिरावट दर्ज की गई | लोगों के उद्योग धंधें तबाह हो गए | इसके कारण वैश्विक समाज तनावग्रस्त जीवन जी रहा है | भारत ने इस विकट परिस्थिति में जिस प्रकार से कार्य किया यह दुनिया में अनूठा उदहारण है | जो कारीगर अपने गावों की तरफ चले गए थे उन्होंने वहां पर छोटे-छोटे उद्योग धंधे विकसित किये, जो कला तथा कौशल अभी तक केवल शहरों में थी उन्होंने दूर दराज के गांवों में उसको स्थापित किया तथा आत्मनिर्भर भारत अभियान में सहयोग दिया| ऐसे हजारों उदहारण समाज के सामने हैं जिन्होंने इस आपदा को अवसर में बदलने का कार्य किया | हम आशा करते हैं जब 15 अगस्त 2021 को भारत अपनी आज़ादी के  75 वर्ष मना रहा होगा तब हम कोरोना से मुक्त होकर विकास के स्वर्णिम पथ पर अग्रसर होंगे |

नमस्कार!

डॉ. कन्हैया झा 

Dr. Kanhaiya Jha