प्रजातंत्र से प्रशस्त होता विकास का मार्ग


 हमारी बातचीत का विषय प्रजातंत्र है. प्रजातंत्र आज की डेमोक्रेसी नहीं है; यह उससे अलग है. पांच वर्ष में एक बार वोट देकर हम शासकों को चुनते हैं, जो संविधान द्वारा प्रतिपादित एक तंत्र अथवा शासनतंत्र के तहत काम करते हैं. प्रजातंत्र शासनतंत्र से अलग है. देखा जाय तो आज प्रजा में कोई तंत्र या व्यवस्था है ही नहीं. आज प्रजा और भीड़ में कोई अंतर नहीं है. सदियों पूर्व भारतीय ऋषियों ने इसकी जरूरत को समझा और शासनतंत्र के साथ-साथ वर्णाश्रम के रूप में प्रजा का भी एक तंत्र बनाया. ऐसे राष्ट्र को जिसमें शासनतंत्र एवं प्रजातंत्र दोनों हों, उसे विराट कहा. यह विराट क्या है ? विराट एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है "एक ऐसा विशाल जिसमें सब चमकते हैं". सीधी भाषा में कहें तो ऐसा देश जिसमें कोई गरीब नहीं है.

एक ऐसा राष्ट्र  जिसमें शासनतंत्र एवं प्रजातंत्र दोनों हैं वह पूर्ण भी है. पूर्ण की यह भारतीय कल्पना भी बहुत क्रांतिकारी है. आप सबने ईशोपनिषद का यह श्लोक तो सुना ही होगा: ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम पूर्णात पूर्णमुदच्यते ! पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिश्य्ते !! श्लोक का भावार्थ इस प्रकार है - पूर्ण से पैदा हुआ है इसलिए पूर्ण है. पूर्ण से पूर्ण निकालने से जो शेष बचेगा वह भी पूर्ण होगा. पूर्ण न घटता है न बढ़ता, एक रस रहता है. इस पूर्ण की कल्पना को पत्नि एवं पति से बने परिवार से समझा जा सकता है, क्योंकि वह भी पूर्ण है. एक परिवार अनेकों परिवारों को जन्म देकर भी पूर्ण ही रहता है. परिवारों की यह कड़ी पुरुष एवं स्त्री के संयोग से ही निरंतर चलती रहती है. परिवार में पुरुष कठोर है जबकि स्त्री सौम्य है. अग्नि स्वरुप पुरुष जीवनदाता है लेकिन उस जीवन को पालना-पोसना स्त्री का काम है.

आज शासनतंत्र देश की जीडीपी बढाने में तो सक्षम हो जाता है पर गरीबी मिटाना एक मुश्किल काम होता है. भीड़ से किसी उपयोगी कार्य की अपेक्षा नहीं की जा सकती. गरीबी मिटाने के लिए प्रजा का  एक तंत्र होना जरूरी है. जैसे की मैं पहले कह चुका हूँ वर्णाश्रम प्रजा का एक प्राचीन तंत्र है, जो इस देश में महाराजा मनु के समय से आजतक जाति-व्यवस्था के रूप में प्रचलित रहा है. हमें इसके मूलभूत सिद्धांतों को समझ आधुनिक परिवेश में एक नए रूप में प्रस्तुत करना होगा.

वर्णाश्रम दो शब्दों वर्ण एवं आश्रम से मिलकर बना है. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र चार वर्ण हैं, तथा ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास चार आश्रम हैं. आश्रम शब्द में श्रम अथवा पुरुषार्थ निहित है, और धर्म अर्थ, काम, एवं मोक्ष के रूप में ये भी चार हैं. वर्णाश्रम चुंकि एक शब्द है इसलिए वर्ण, आश्रम एवं पुरुषार्थ का आपस में सम्बन्ध होना चाहिए. जन्म के समय शिशु ज्ञान-शून्य है इसलिए उसे शूद्र या कुछ और भी कह सकते हैं. आज भूमंडलीकरण के युग में युवाओं को पूरे विश्व का ज्ञान लेना चाहिए.   कौन जाने किसे राष्ट्र के सर्वोच्च पद पर पहुँच राज-धर्म निभाना पड़े ? वर्णाश्रम के अनुसार युवाओं का वर्ण शूद्र, आश्रम ब्रह्मचर्य तथा पुरुषार्थ धर्म था.

Kanhaiya Jha
(Research Scholar)
Makhanlal Chaturvedi National Journalism and Communication University,
Bhopal, Madhya Pradesh
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बिजली की दरों को प्रभावित करती गैस की कीमत

देश में पहली बार, गैस उत्पादान, सन 2006 में सरकार ने कृष्णा-गोदावरी (केजी) बेसिन से गैस निकालने का ठेका देश की एक बड़ी कंपनी रिलाइंस तथा उसकी सहायक कनेडियन कंपनी को दिया था. इन कम्पनियों ने गैस भण्डार की सामर्थ्य तथा वार्षिक उत्पादन के आंकड़ों को बढ़ा-चढा कर पेश किया था. इससे अनेक छोटे निवेशकों ने अधिक दाम पर कंपनी के शेयर खरीदे. साथ ही देश की गैस से बिजली उत्पादन के लिए भी अनेक कंपनियों ने भारी निवेश किया. इससे भी रिलाइंस के शेयरों में उछाल आया था.  

जून 2013 में आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने रंगराजन कमेटी की सिफारिशों के आधार पर रिलाइंस की गैस के दाम 4.2 डॉलर से बढ़ाकर 8.4 डॉलर कर दिए थे, जो कि 1 अप्रैल 2014 से लागू होने थे. परंतू आम चुनावों के कारण  तथा आम आदमी पार्टी द्वारा रिलायंस पर आरोप लगाने से अब यह निर्णय नयी सरकार को 1 जुलाई से पहले लेना है. 

सन 2012 में जब अनेक राज्यों में गैस से बिजली उत्पादन होने लगी तो मुख्यतः रिलाइंस कंपनी की वजह से गैस के उत्पादन में गिरावट आने लगा. साथ ही रिलाइंस की भागीदार कनेडियन कंपनी ने बताया कि गैस भण्डार आंकने में उनसे गलती हुए थी. उनके अनुसार केजी बेसिन में गैस भण्डार पूर्व अनुमान से 80 प्रतिशत कम है. इस कारण अनेक राज्यों में बिजली के उत्पादन में कमी आने लगी. साथ ही छोटे निवेशकों की चिंता बढने से रिलाइंस के शेयरों में गिरावट आने लगी. कम्पनियां अधिक लाभ कमाने के लिए शेयरों को कृत्रिम तरीके से ऊपर-नीचे करती रहती हैं और रिलाइंस ने भी ऐसा ही किया.  

केजी बेसिन में गैस उत्पादन शुरू से ही विवादों में घिरा रहा है. नदियों के मुहाने पर स्थित होने से जमीन बहुत उपजाऊ है. गैस उत्पादन से किसानों की जमीन धंसने की शिकायतें भी आयी हैं. उन्होनें कंपनी के खिलाफ आंध्र प्रदेश के हाईकोर्ट में मुकदमा भी दायर किया हुआ है. केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय के खिलाफ भी शिकायत है कि उसने पर्यावरण के नुक्सान पर आँख मीची हुई हैं. सन 2012 की एक रिपोर्ट में कैग (CAG) ने पेट्रोलियम मंत्रालय समेत इसी मामले से जुड़े सरकारी संस्थाओं पर रिलाइंस को अधिक मुनाफ़ा दिलवाने का आरोप लगाया था.  

गैस की कीमतों का सीधा असर बिजली की दरों पर पड़ता है. गैस की पूर्ती न होने पर बिजली उत्पादन कम्पनियां आयतित कोयले से उत्पादन करती हैं जो महंगी पड़ती है. पिछले वर्ष जून में सरकार ने बिजली उत्पादन कंपनियों को छूट दी कि वे बढी हुई कीमतों को बिजली वितरण कंपनियों से वसूल कर सकती हैं. लेकिन बिजली वितरण कम्पनियां लगभग 1.9 लाख करोड़ रुपये का घाटा झेलती हुई वैसे ही खस्ता हालत में हैं. अपने घाटे को कम करने के लिए ये कम्पनियां अपनी बिजली खरीद में कटौती करती हैं. बिजली की आपूर्ती कम होने तथा उसके दाम बढने से जनता में रोष पैदा होता है. 

रंगराजन कमेटी ने विदेशी बाज़ारों में गैस की कीमतों को ध्यान में रखते हुए एक फार्मूला बनाया था. पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें तय करते हुए भी देशी कम्पनियां विदेशी बाज़ार की कीमतों से बराबरी चाहती हैं. उनका तर्क होता है कि यदि वे इन पदार्थों को विदेशी बाज़ार में बेचते तो उन्हैं अधिक लाभ होता. यह सही है कि उद्योगों को बढ़ावा देना शासन का कर्तव्य होता है. इसलिए समय-समय पर कठोर कानूनी प्रक्रिया से हटकर शासन उन्हें सहूलियतें देता है. इसके अलावा उनके द्वारा पर्यावरण आदि अनेक अतिक्रमणों की अनदेखी भी करता है. लेकिन यह सब एक सीमा तक होना चाहिए. 

Kanhaiya Jha
(Research Scholar)
Makhanlal Chaturvedi National Journalism and Communication University,
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