राजनीति और सामाजिक क्षेत्र आपस में जुड़ा हुआ है | हालाँकि दोनों क्षेत्रों में एक बारीक़ रेखा इसे एक दूसरे से अलग जरूर करती है | राजनैतिक दलों को सामाजिक विषयों पर चर्चा करनी होती है और सामाजिक विषय बिना राजनैतिक सहयोग के व्यापक स्तर पर संभव नहीं होता है |
हमारा देश जब कोरोना की दूसरी लहर को झेल रहा है, ऐसे समय में राजनैतिक दलों तथा सामाजिक दलों का क्या उत्तरदायित्व है ? इन दोनों ही क्षेत्रों से जैसी अपेक्षा की जाती है क्या वह हो रहा है इस पर विचार करने की जरूरत है | जब से कोरोना संकट आया है केंद्र तथा राज्य की सरकारें व्यापक स्तर पर सुविधाओं को बढ़ाने का कार्य कर रही है | आज यदि हम कोरोना से पूर्व की स्थिति और आज की स्थिति पर विचार करेंगे तो हमें बदलाव स्पष्ट दिखेगा | हाँ यह जरूर है कि जितनी आवश्यकता बढ़ी है उतनी पूर्ति नहीं हो पाई है | अचानक इतनी पूर्ति करना किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं होता |
राजनैतिक क्षेत्र में कार्य करने वालों के लिए एक बात होती है कि परिणाम क्या आयेंगे यह किसी को पता नहीं होता है | लेकिन परिणाम आने से पहले वह अपना सबसे बेहतर प्रदर्शन करने का प्रयास करते हैं | प्रश्न उठता है कि क्या कोरोना से निपटने के लिए भी राजनैतिक दलों द्वारा यह सब किया गया | यदि हम हाल की घटनाओं पर नज़र डाले तो सबसे पहले देश के पूर्वप्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पत्र लिखाकर सरकार को चेताया, फिर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने चिट्ठी लिखी और अब 12 राजनैतिक दलों ने एक और चिट्ठी प्रधानमंत्री को लिखी है | निश्चित रूप से विपक्ष को सरकार से प्रश्न पूछने का पूरा अधिकार है लेकिन इन अधिकारों का प्रयोग यदि राजनीति के लिए किया जाता है तो यह समय इन सबके लिए उपयुक्त नहीं है | देश की इन दोनों दलों के पास व्यापक संघठन विस्तार है | यही दोनों दल नहीं बल्कि देश में पंजीकृत 2 हजार से अधिक राजनैतिक दल भी अपना अस्तित्व रखते हैं | इन सभी राजनैतिक दलों को स्थानीय स्तर पर कोरोना मरीजों की मदद करनी चाहिए | संभवतः देश का ऐसा कोई ब्लाक, मंडल या जिला नहीं होगा जहाँ कोई न कोई राजनैतिक या सामाजिक संगठन नहीं होगा | इनकी संख्या करोड़ों में हैं | अभी देश में कोरोना मरीजों की संख्या केवल लगभग 2.5 करोड़ है | इन राजनैतिक तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं की संख्या 40 करोड़ है | समझिये समाज के इतने बड़े संगठन की उपयोगिता किस प्रकार हो सकती है | केवल राजनैतिक आरोप प्रत्यारोप किसी राजनैतिक दल को तात्कालिक फायदा या नुकसान तो दे सकता है लेकिन जिन लोगों की जाने जा रही उनका जीवन फिर से नहीं मिलने वाला है |
अभी जब में इन सब बातों के बारे में सोच रहा हूँ तब अचानक खबर आई है कि वेस्ट बंगला की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के छोटे भाई का निधन कोरोना से हो गया है | समझिये यह बीमारी कितनी जानलेवा है | यह बीमारी जब बड़े बड़े सत्ताधीशों को नहीं छोड़ रही है तो आम जन का क्या होगा |
गंगा नदी में अचानक बढ़ते लाश के ढेर यह बता रहें हैं कि आपसी राजनैतिक रंजिश की जगह सेवा समर्पण के कार्यों को किया जाये | कानून के दायरे में रहकर जो भी किया जा सकता है वह करना चाहिए | कुछ दिन पहले सरकार में कार्यरत एक महिला का मुझे मेसेज आया कि कोरोना के कारण जिनके माता पिता नहीं रहे और बच्चा अकेला हो गया है उसे वह पालना चाहती हैं | समाज की इस संवेदनशीलता को राजनैतिक दलों को समझना चाहिए | समाज बचेगा तभी आप भी स्थानीय राजनीति कर पाएंगे नहीं तो हवाहवाई राजनीति अधिक दिन तक नहीं चलती है | यह हमारे देश ने बार बार देखा है |
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