जब देश स्वतंत्र हो जाता है , तब शक्ति का अधिष्ठान बदल जाता है. तब शक्ति राजनीती में नही , समाज सेवा में रहती है, क्योंकि समाज का ढांचा बदलना होता है. आर्थिक विषमता मिटानी होती है. ये सरे काम सामाजिक क्षेत्र में करने पड़ते हैं. (विनोवा भावे)
ग्राम सभा की मेरी कल्पना यह है कि वह एक ऐसा सम्पूर्ण प्रजातंत्र होगा, जो अपनी अहम् जरूरतों के लिए पड़ौसी पर भी निर्भर नहीं करेगा, फिर भी बहुतेरी दूसरी जरूरतों के लिये-जिनमें दूसरों का सहयोग अनिवार्य होगा-वह परस्पर सहयोग से काम लेगा।(महात्मा गाँधी)
जन सेवा करने वाले को सतत् यह सोचते रहना चाहिए कि हमें किस तरह दूसरों को अधिक सुख दे सकते हैं। इस दुनिया का भार और दुनिया की सारी समस्याओं का हल ढूंढ़ निकालने की जिम्मेदारी हम पर नहीं है। वह तो उस पर है, जिसकी यह सारी लीला है। हमें इतना ही देखना है कि हमारे इर्द-गिर्द के वातावरण में जितनी सुगंध ला सकते हैं, उतनी फैलाने की चेष्टा हम करें। चन्दन यही करता है - खुद घिसता है और दूसरों को खुशबू देता है. (विनोवा भावे )
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