सत्ता का विकेंद्रीकरण

किसी भी विकास का आधार ग्राम इकाई होती है. राज्य सरकारें बड़े आकार के बावजूद ग्राम स्तर पर जन सेवाएँ जैसे बिजली, पानी, अच्छी सड़क - यहाँ तक की आवारा मवेशियों को हटाना, आदि समस्याओं को सुलझाने में भी अक्षम नज़र आती हैं. यह इसलिए क्योंकि ग्राम स्तर पर धन, स्टाफ आदि की व्यवस्था तथा प्रबंध सही नहीं है.

भारत में सदिओं से पंचायतों ने ही स्वायत्त ग्राम इकाईयों द्वारा पूरे देश का शासन चलाया था. गाँव के प्रमुख लोग स्वयं आपस में बैठकर बिना किसी चुनाव के पंचायत का निर्माण कर लेते थे. गांधीजी ने केंद्रीकृत (Centralized) ब्रिटिश संसद प्रणाली को एक "बिना आत्मा की मशीन" कहा था. आज़ादी के पहले की कांग्रेस सरकारों के अनुभव से उनका यह निश्चित मत बना था की सत्ता के केन्द्रीकरण से भ्रष्टाचार बढेगा. इसलिए उन्होंने स्वायत्त ग्राम इकाईयों के आधार पर विकेंद्रीकृत (Decentralized) शासन तंत्र स्थापित करने की बात कही थी. प्रजातंत्र में प्रजा को शासन का अधिकार देकर सशक्त करना चाहिए. पिछले 66 वर्षों  के अनुभव से यह कहा जा सकता है की केवल वोट के अधिकार से प्रजा सशक्त नहीं होती जिससे वह सत्ता की मनमानी को रोक सके.

संविधान के पार्ट  IV में पंचायतों की भूमिका गांधीजी के "ग्राम स्वराज" से भिन्न रखी गयी. डाक्टर अम्बेडकर के अनुसार गाँवों के जाति-पांति आदि आधारों पर बंटे होने के कारण पंचायतें स्वराज के लिए सक्षम नहीं थी. नेहरूजी ने भी ग्राम पंचायतों की जगह सांसदों एवं विधायकों को ही प्राथमिकता दी.

सन 1958 में राष्ट्रीय विकास परिषद् ने बलवंत राय मेहता कमेटी की सिफारिशों को मानकर त्रिस्तरीय पंचायती राज्य संस्था के गठन को स्वीक्रति दी. शासन के इस तीसरे स्तर पर सबसे नीचे गाँवों में ग्राम-पंचायत तथा नगरों में नगरपालिकाएं एवं वार्ड्स रखे गए. मध्य स्तर पर ग्रामीण क्षेत्र के लिए ग्राम-समितियां तथा शहरों में नगर निगम अथवा नगर पंचायत को बनाना था. पंचायती राज्य संस्था के शीर्ष पर जिला परिषद् बनाने का प्रावधान था. यह पूरी पंचायती राज संस्था (PRI) राज्य सरकार के नियंत्रण में रखी गयी. सन 1950 के दशक में सभी राज्य सरकारों ने इस व्यवस्था को मान लिया था और पंचायतों को स्थापित करने के लिए क़ानून भी बनाये थे, किन्तु सत्ता का कोई विकेंद्रीकरण नहीं हो सका.

सन 1993 में 73 तथा 74 वें संविधान संशोधन से चुनाव द्वारा पंचायतों के गठन को अनिवार्य किया गया. इस क़ानून में उन्हें विकास तथा सामजिक न्याय के लिए सत्ता एवं जिम्मेवारी देने का प्रावधान था. इसके अलावा संविधान के 11 वें शिडयूल में दिए गए 29 विषयों के क्रियान्वन की जिम्मेवारी भी उन्हीं दी गयी. ब्लाक स्तर पर क्षेत्र के सांसद तथा विधायकों को भी समिति में रखा गया तथा ब्लाक विकास अधिकारी को समिति का प्रशासक बनाया गया. जिला स्तर पर भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के किसी अफसर को पूरी व्यवस्था का प्रशासक बनाया गया.  क़ानून में पंचायत को भी टैक्स आदि लगाने का अधिकार दिया गया.

परंतू पंचायतों के अधिकारों का मामला राज्य सरकारों पर ही छोड़ दिया गया. देश के 15 राज्यों में किये गए एक अध्ययन (EPW: July 5,2003) के अनुसार राज्यों द्वारा पंचायतों को जिम्मेवारियां तो दी गयीं परन्तु सत्ता का उचित हस्तांतरण नहीं किया गया. गोवा में राज्य स्तर पर 50000 प्रशासनिक अधिकारिओं का वेतनमान 250 करोड़ रूपये है. परंतू राज्य की 67 प्रतिशत ग्रामीण आबादी के शासन के लिए निर्वाचित 188 ग्राम पंचायतों के लिए कर्मचारी बहुत ही कम हैं. यहाँ पर तीन पंचायतों के बीच एक सचिव तैनात किया गया है. इस कारण से टैक्स वसूली, जो की उनका मुख्य कार्य है, वह भी नहीं हो पाता. इस प्रकार संविधान की अवहेलना हो रही है.  

केन्द्रीकरण की जो प्रक्रिया राज्य स्तर पर है वही केंद्र स्तर पर भी आज़ादी के समय से ही चल रही है. सन 1991 में नव-उदारवाद अपनाने के बाद तो इसमें और गति आयी. केंद्र से राज्यों को उनके बजट में सहयोग एक फार्मूले के तहत मिलता है. इस राशि में केंद्र की अपनी महत्वपूर्ण (Flagship) योजनाओं का भी पैसा होता है. 11 वीं पंचवर्षीय योजना में यह राशि बढ़ते-बढ़ते कुल बजट सहयोग के 42  प्रतिशत तक पहुँच गयी थी. केन्द्रीकरण राष्ट्रीय विकास परिषद् में भी केंद्र एवं राज्यों के बीच टकराव का विषय बना रहा है. फिर सरकार द्वारा गठित अनेक कमीशनों ने भी इस विषय पर अपनी चिंता व्यक्त की है.

शासन यदि संविधान के अनुसार चले तभी सुशासन कहलायेगा. जब संविधान में पंचायती राज्य संस्थाएँ बनाने के बारे में लिखा है तो केंद्र का यह कर्तव्य बनता है की उन संस्थाओं को एक निश्चित सीमा में बनवाया जाए. यदि कोई राज्य सरकार जान बूझ कर कोताही करती है तो उसके खिलाफ कार्यवाही की जाए. अच्छा तो यह हो की जो विषय केवल केंद्र की लिस्ट में आते हैं उनकी योजनायें भी नीचे के स्तर के सहयोग से बनाई जायें.  
Kanhaiya Jha
(शोध छात्र)
Makhanlal Chaturvedi National Journalism and Communication University, Bhopal, Madhya Pradesh
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