देश के संसाधनों का पुनर्प्रयोग आवश्यक

मनुष्य की आवश्यकताएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है | मानव की जीवनशैली में भी समय के अनुसार अनेक परिवर्तन आये हैं | जीवन का उद्देश्य केवल रोटी, कपड़ा, मकान और अध्यात्म की प्राप्ति मात्र नहीं है बल्कि आज गरिमामय जीवन जीने के लिए नई नई आवश्यकताएँ बढ़ रही है |

बढ़ती आबादी तथा आवश्यकता के कारण संसाधनों का उपभोग भी बढ़ा है | खपत जितना अधिक होगा प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी उसी अनुपात में बढ़ेगा तथा अधिक दोहन के कारण यह बहुत जल्दी ही विलुप्त भी हो सकते हैं | इसके वैश्विक समस्या का समाधान 2 तरीकों द्वारा किया जा सकता है | पहला वैकल्पिक संसाधनों की पहचान की जाये, दूसरा संसाधनों का पुनः उपयोग किया जाए जिसे चक्रीय अर्थव्यवस्था (Circular Economy) भी कहा जाता है | 

जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक कारणों तथा प्रभाव से विश्व भलीभांति है | अभी हाल ही में उतराखंड में जलाशयों का टूटना तथा तबाही के लिए जलवायु परिवर्तन ही जिम्मेदार है | यह भयानक जलवायु परिवर्तन इसलिए आया क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था खपत आधारित हो रही है | इसका प्रतिकूल प्रभाव प्रकृति पर रहा है जो अंततः भयावह है | 

दुनिया भर में यह बहस जोरों पर है कि प्राकृतिक संसाधनों का किस सीमा तक दोहन किया जाये | यदि दोहन की गति इसी प्रकार की रही तो वह दिन दूर नहीं कि आने वाले पीढ़ी के लिए प्राकृतिक संसाधनों के नाम पर कुछ भी नहीं बचेगा | 

हमारी संस्कृति में पृथ्वी को ‘माँ’ कहकर पुकारा गया है “माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या” ये धरती हमारी माता है और हम इसके पुत्र है। धरती माता हमारे जीवन के अस्तित्व का एक प्रमुख आधार है,  हमारा पोषण करती है। इसलिए वेद आगे कहते है "उप सर्प मातरं भूमिम्" हे मनुष्यो मातृभूमि की सेवा करो । अपने राष्ट्र से प्रेम करो, राष्ट्र के साथ द्रोह करना धर्म के साथ द्रोह करना ही है । देश के प्रति इस तरह निष्ठा रखना, अपनी मातृभूमि के प्रति ऐसी श्रद्धा व प्रेमभाव रखना जैसे भाव केवल और केवल भारतीय संस्कृति में ही प्रकट होता है । जब तक हमारा व्यवहार इस पृथ्वी पर पुत्र वाला नहीं होगा तब तक पृथ्वी दिन प्रतिदिन अपने विनाश की तरफ ही जाती रहेगी | हमें यह सदैव याद रखना चाहिए कि हम इस धरती के मालिक नहीं है | इस धरती पर हम केवल 100 वर्षों के लिए ही आये हैं  और आने वाली संतति के जीवन को सुगम बनाने के लिए हमें कार्य करना है | हम अंत के माध्यम न बने हम सतत प्रवाह के धावक बनें | 

आज यह बहुत आवश्यक हो गया है कि हम समाज संरचना को और अधिक कुशल बनायें | जीवन जीने का ढंग इस प्रकार का हो जिससे कम से कम प्रदूषण निकले | निश्चित रूप से कहीं न कहीं से इसकी शुरुआत इस पृथ्वी को बचने के लिए करनी होगी | आज सही दिशा में चिंतन करने की कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता है | 

इन समस्या के समाधान के लिए चक्रीय अर्थव्यवस्था को अपनाना बहुत जरूरी है | चक्रीय अर्थव्यवस्था की इसका समाधान है | विश्व की बहुत से चुनौतियों का सामना इसके माध्यम से किया जा सकता है | वस्तुओं का फिर से उपयोग हो, कचरा केवल कचरा न रहे | वह दूसरे कार्यों में उपयोग हो तथा संसाधनों का कुशल उपयोग मानव की जीवन शैली बने इसकी महती आवश्यकता है | इस दिशा में नए नए कदम उठाने की आवश्यकता है | 

आज युवा भारत की शक्ति के माध्यम से इस कार्य को करने की शुरुआत की जा सकती है | सरकार के सहयोग तथा युवा के मस्तिक के आधार पर निश्चित ही इस दिशा में बढ़ा जा सकता है | यह रचनात्मक कार्य निश्चित ही पूरी पृथ्वी के लिए कल्याणकारी सिद्ध होगा | इस क्षेत्र में होने वाले नए-नए स्टार्टअप से युवा पीढ़ी को रोज़गार भी प्राप्त होगा तथा पृथ्वी की रक्षा भी हो सकेगी | 

डॉ. कन्हैया झा 

Dr. Kanhaiya Jha


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