कोविड का कहर

अप्रैल में जिस प्रकार से अचानक कोरोना के मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ और मृत्यु दर में बढ़ोतरी हुई उसने सरकारों के हाथ पाँव फुला दिए थे | सरकारों ने भी जितना संभव हुआ सभी प्रकार के विकल्पों को ध्यान में रखकर जनता को अधिक से अधिक राहत देने का प्रयास किया | लेकिन अब जब सरकार द्वारा थोड़ी सख्ताई की गई तब अब धीरे धीरे कोरोना के मरीजों की संख्या में कमी को दर्ज किया जा रहा है | अब पहले की तुलना में मृत्यु भी कम हो रही है | देश के लगभग सभी राज्यों ने अपनी अपनी आवश्यकता के अनुसार लॉकडाउन की घोषणा करते हुए इसे कण्ट्रोल करने का प्रयास किया |

आज सबसे बड़ी बहस का विषय यह है कि आखिर कब तक इस प्रकार के लॉकडाउन को लगाया जायेगा | इससे जहाँ देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ता है वहीँ आम गरीब जनता को रोटी के लाले पड़ जाते हैं | यह बात शत प्रतिशत सत्य है कि यदि देश को इस प्रकार के लॉकडाउन से मुक्ति चाहिए तो जल्दी से जल्दी सभी लोगों को कोरोना का टीका लगाया जाना जरूरी है जिससे अधिक से अधिक अधिक लोगों के शारीर में इस बीमारी से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सकते | केंद्र एवं राज्य के सरकारे अपने अपने स्तर पर अधिकतम प्रयास भी कर रही है | सरकारे जनता को जल्दी से जल्दी टीका लगे इसके लिए सभी प्रकार के विकल्पों की खोज कर रही है | 

भारत के लिए गर्व की बात है कि आज भारत को टीके की तकनीक के लिए किसी विदेशी देश या संस्था पर निर्भर होना नहीं पड़ रहा है | भारत के वैज्ञानिकों ने कम समय में ही अपने देश का टीका विकसित किया है | और हमारे देश की फार्मा कम्पनियाँ अधिक से अधिक उत्पादन करने का प्रयास कर रही है | प्रधामंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा भी जिस प्रकार से इन फार्मा क्षेत्र को प्रोत्साहित किया गया है वह तारीफ के लायक है | 

भारत बायोटेक द्वारा को-वैक्सीन  का निर्माण किया गया, वहीँ सीरम इंस्टिट्यूट ने ब्रिटेन की दवाई का भारत में उत्पादन शुरू किया | जब देश में प्रधानमंत्री द्वारा इन दोनों टीके की घोषणा की गई थी उस समय अनावश्यक राजनीति के कारण लोगों के मन में एक अलग प्रकार का भ्रम पैदा करने का काम किया गया था | इस राजनीति के कारण बहुत से लोगों ने कोरोना के टीके नहीं लगवाए और वह संक्रमित होते चले गए | समाजवादी पार्टी द्वारा तो इसे भाजपा का टीका तक कह दिया गया था | इस प्रकार की हल्की टिप्पणी से देश को बहुत ही नुकसान होता है | ऐसी भी खबरे आई की यह टीका लेने से लोगों के खून के थक्के जम जाते हैं बल्कि सच्चाई यह है कि इसका प्रतिशत बहूत ही कम था | अब जब केस बढ़ने शुरू हुए तो लोगों को अब टीके की जरूरत समझ आ रही है | इस बात को सभी लोग जानते हैं कि किसी भी चीज का उत्पादन अचानक नहीं किया जा सकता है | दवाई के उत्पादन के लिए विशेष प्रकार की व्यवस्था करनी पड़ती है | सम्पूर्ण व्यवस्था के  अभाव में दवाई का उत्पादन नहीं किया जा सकता है | 

जब 2020 की समाप्ति हुई तो उस समय मनाया जा रहा था कि जल्दी से जल्दी कोरोना समाप्त हो जायेगा क्योंकि 16 जनवरी 2021 से टीकाकरण की शुरुआत हो रही थी | भारत ने पहली लहर के दौरान जिस प्रकार से सफलतापूर्वक कोरोना को नियंत्रित किया उसकी चर्चा भारत समेत विदेशों में भी हुई थी| लेकिन धीरे धीरे कोरोना के टीके पर होती राजनीति ने इसकी रफ़्तार को धीमा कर दिया | आज भी लगभग 30 लाख स्वास्थ्यकर्मी ऐसे हैं जिन्हें कोरोना के टीके लगने बांकी हैं | इन्हें सबसे पहले टीके लगाये गए थे | जैसे जैसे टीके की खपत बढ़ती गई सरकारें भी अपने आर्डर को बढाती गई | सच्चाई तो यह है कि भारत में यह कल्पना ही नहीं की गई थी कि कोरोना की दूसरी लहर इतनी भयावह होगी | 

यह अनुमान लगाया जा रहा है कि जुलाई तक देश में पर्याप्त टीके की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकेगी | क्योंकि सरकार ने जिन कंपनियों के साथ बात की है उनके अनुसार जुलाई में 216 करोड़ टीके की खुराक उपलब्ध करवाई जा सकती है | ऐसे में यह तो यह बात है कि हम सभी को जुलाई तक कोरोना के नियमों का कड़ाई से पालन करना ही होगा | जब देश में पर्याप्त टीके उपलब्ध हो जायेंगे तो सभी लोगों को अपनी बारी आने पर कोरोना के टीके अवश्य ही लगवाने चाहिए | 

डॉ. कन्हैया झा 

Dr. Kanhaiya Jha


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