किसान आन्दोलन मृत्यु के द्वार तक

आज देश इस सदी की सबसे बड़ी त्रासदी को झेल रहा है | ऐसे विकट समय में क्या सरकार, क्या सामाजिक संगठन तथा आम जनता, सबकी यही एक इच्छा है कि जल्दी से जल्दी कोरोना महामारी से सभी को निजात मिले | इस महामारी से व्यापकता इसी बात से लगाई जा सकती है कि केवल दिल्ली में 200 से अधिक डाक्टरों ने अपने जीवन की आहूति लोगों की जान बचाने के लिए दे दी | सरकारी विभाग में काम करने वाले न जाने कितने अधिकारी, कर्मचारी, नेता, विधायक, संसद, मंत्री तथा आम जनता इस बीमारी के कारण अब इस दुनिया में नहीं रहे हैं | 

लेकिन इस बीच किसानों के नाम पर आन्दोलन करने वाले जब कोरोना नियमों की अनदेखी करते हुए दिल्ली कूच की बात करते हैं तो उनकी यह संवेदनहीनता समाज को रास नहीं आती है | यह सच है कि हमारे संविधान ने हमें आन्दोलन करने की स्वतंत्रता दी है| लेकिन यह हमारा नैतिक कर्तव्य है कि आन्दोलन के लिए सही समय का इंतज़ार तो करें | आन्दोलन के नाम पर सैकड़ों लोगों को मृत्यु के द्वार पर लेकर जाने को किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता है | हो सकता है कि इस आन्दोलन के कारण कुछ लोगों के राजनैतिक हित सधते हों लेकिन अपने निहित राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए आम जनमानस के जान को खतरे में नहीं डालना चाहिए | 

इससे पहले ही जब सरकार तथा संगठनों के बीच 11 दौर की बातचीत का सिलसिला चल रहा था उसी दौरान इन संगठनों को अपना अहंकार त्याग करके सरकार के साथ कोई बीच का रास्ता निकाल लेना चाहिए था | क्योंकि इस प्रकार के आन्दोलन में जो नेता होता है वह तो सुरक्षित रहता है लेकिन बेचारी आम जनता तथा गरीब कार्यकर्ता वक्त की मार को झेलने के लिए मजबूर हो जाता है | 

संवाद द्वारा बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता हैं | संवाद कभी भी एक पक्षीय नहीं हो सकता है | संवाद में कभी भी एक पक्षीय विषय नहीं चल पाते हैं | जो लोग इस प्रकार का संवाद करते हैं वास्तव में वह समस्या का समाधान नहीं चाहते हैं बल्कि अपनी हठधर्मिता को सिद्ध करना चाहते हैं | इस आन्दोलन के दौरान भी यही हुआ| जनता ने जब देखा कि आन्दोलन का नेतृत्व करने वाले केवल अपनी हठधर्मिता को मनाने के लिए आये हैं तो ऐसे में आम जनता का समर्थन भी समाप्त होता चला गया | आज यह आन्दोलन मुट्ठी भर लोगों का कार्यक्रम बनकर रह गया है | 

इस बात से नाकारा नहीं जा सकता है कि इस प्रकार के आन्दोलन के कारण ही कोरोना का प्रसार गाँव गाँव तक पहुँच गया तथा गावों में सीमित मेडिकल सुविधा होने के कारण वहां पर मृत्यु दर भी अधिक रहा है | आज पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा हरियाणा में जो केस बढे हैं उसमें इस अड़ियल आन्दोलन का बहुत बड़ी भूमिका है | 

वास्तव में यह समय किसी भी प्रकार के जमावड़े का नहीं है | यह समय आपसी सहमती करके इस संकट काल में आम जनता की जान को बचाने का है | यदि इस देश की जनता सुरक्षित रहेगी तो राजनीति करने के लिए  आगे और भी मौके मिलेंगे | दबाव समूहों का कार्य जनता के हित में फैसले कराने के लिए होना चाहिए न कि खुद की राजनीति करने के लिए जनता को मौत में धकेलने के लिए | 

डॉ. कन्हैया झा 

Dr. Kanhaiya Jha



0 टिप्पणियाँ: