आर्थिक संतुलन से सामाजिक संतुलन

अपने देश में आज़ादी के बाद दो विषय सबसे चर्चित रहे हैं. पहला गरीबी, जिसे मिटाने का सभी दलों ने वायदा किया. दुर्भाग्य से ये यथावत बनी हुई है. गरीब किसको कहना चाहिये. अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है. दूसरा विषय विकास है. सभी दल सत्ता में आने से पहले विकास की बात करते हैं. विकास किसका हुआ और कैसा होना है यह भी स्पष्ट नहीं है. विकास तो होता है लेकिन उस विकास से विपक्ष कभी भी संतुष्ट नहीं दिखाई देता. हम अभी तक इन दो विषयों को परिभाषित नहीं कर पाये हैं.

आज़ादी प्राप्ति के बाद हमारे देश के कर्णधारों ने देश की जनता को विकास व गरीबी मिटाने का वायदा किया था. पिछले 60 वर्षों में दुनिया ने भारत को बदलते हुए देखा है. देश में बहुत से मूलभूत परिवर्तन हुए हैं. देश की युवा पीढ़ी के अथक प्रयत्नों के कारण, सम्पूर्ण विश्व भारत के ज्ञान का लोहा स्वीकारता है. सम्पूर्ण विश्व में कार्यरत भारतीय युवा अपने अदम्य साहस और अटूट विश्वास के बल पर व्यापर तथा नौकरी के साथ विश्व में भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार में अहम भूमिका निभा रहे हैं.

विकास के सतत क्रम में असंगठित क्षेत्र में कार्यरत 93 प्रतिशत मजदूर आज भी सामाजिक समानता को प्राप्त नहीं कर पाये हैं. उन्हें उद्योगों प्रतिष्ठानों द्वारा मासिक वेतन के अलावा PF, Gratuity, Medical Insurance, Pension की सुविधायें भी नहीं दी जाती है. क्या लोकतान्त्रिक देश में सबसे निचले स्तर पर कार्य करने वाले को यह सुविधायें प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं है. ये वर्ग साधारण वर्ग से अधिक मेहनत करता है. लेकिन सुख-सुविधाओं के नाम पर दो वक्त की रोटी भी नहीं या उतना ही नसीब हो पाता है.

केन्द्र व राज्य सरकारें वास्तव में आम जनमानस का कल्याण चाहते हैं तो उन्हें उनके लिये ऐसी योजनाओं का निर्माण करना होगा जिससे समाज को सीधे लाभ प्राप्त हो. कम से कम PSU (Public Sector Undertaking) में 90% कर्मचारियों को नियमित किए बिना गरीबों के विकास की कल्पना बईमानी होगी. सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार सभी व्यक्तियों को है. किसी भी लोकतंत्र में शासक की जिम्मेदारी होती है कि समाज सम्मानपूर्वक जीवन यापन कर सके.

क्या हम ऐसी नीति का निर्माण नहीं कर सकते हैं जिसमें एक स्तर के बाद किसी भी उद्योग में 10 प्रतिशत से अधिक कर्मचारी अस्थाई ना हो. आज सरकार ने जो गरीबी की परिभाषा विकसित की है वह हास्यास्पद है. ऐसे में प्रत्येक व्यक्ति की न्यूनतम सेलरी इतनी होनी चाहिये जिससे समाज का प्रत्येक वर्ग सम्मानपूर्वक जीवनयापन कर सके.

यह सत्य है कि बहुत से SC, ST व अल्पसंख्यक गरीबी रेखा से नीचे रहते है. लेकिन इस सत्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि इस समाज में से ही ऐसे बहुत से लोग हैं जो अच्छे स्थान को प्राप्त कर चुके हैं. ऐसे में इन व्यक्तियों को लाभ मिलने से उसी समाज के अन्य ऐसे व्यक्तियों को लाभ मिलने से उसी समाज के ऐसे व्यक्ति जो आर्थिक रूप से पिछड़े हैं को लाभ प्राप्त नहीं हो पाता है. इन्हीं वर्ग के एकाधिकार के कारण इसी वर्ग के अन्य आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े व्यक्ति को योजनाओं का लाभ प्राप्त नहीं हो पाता है.

देश में जातिगत व धार्मिक आधार पर किए जा रहे राजनैतिक आरक्षण को समाप्त करने की आवश्यकता है. क्या हम अपने सम्पूर्ण समाज को पांच वर्षों के लिये दो वर्गों APL(Above Poverty Line) व BPL (Below Poverty Line) में नहीं बाँट सकते हैं. इससे यह स्पष्ट हो जायेगा कि समाज में कितने प्रतिशत लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ पहुचना जाना चाहिये.इससे देश में सांप्रदायिक विद्वेष की भावना समाप्त होगी तथा ऐसे लोग लाभान्वित होंगे जो वास्तव में इन सब चीजों के लिये हक़दार हैं. प्रत्येक पांच वर्ष पर यह आकलन करना जरूरी होना चाहिये कि परिवार की वर्तमान आर्थिक स्थिति क्या है.

इसके लिये आवश्यक है कि गरीबी रेखा से नीचे रह रहे परिवार की परिभाषा को बदलना होगा. गरीब परिवार वाले बच्चे को शिक्षा, पुस्तक, होस्टल, खाना, कपडे, स्वास्थ्य एवं कुछ धनराशी शत-प्रतिशत मुफ्त में देनी होगी.

एक गरीब परिवार में से एक ही व्यक्ति बीपीएल सीमा कोटे से नौकरी प्राप्त कर सके तथा सरकारी नौकरी में गरीबों के लिये पचास प्रतिशत का कोटा तय किया जाना चाहिये.

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